प्रिंसेस डायना
' महिलाओं में हर हालत से उबरने की मान्यता इतनी गहरी पैठ कर चुकी है कि महिलाओं को भी असाधारण हिम्मत जुटाकर यह मानना होता है कि वो अब नहीं उबर सकती ... उन्हें शायद मदद की जरूरत है । अमूमन तो वो अकेले ही हालातों से निकलने की कोशिश करती हैं लेकिन गहरे अवसाद में फंस जाती हैं । अकेलेपन और अवसाद में उनका स्वाभिमान भी गायब होने लगता है ।
इस दर्द से निजात पाने के लिए कई महिलाएं और मर्द भी अल्कोहोल का सहारा लेने लगते हैं । यहां भी ये माना जाता है कि महिलाएं तो शराब पर निर्भर ही नही हैं , तो ऐसा होने पर भी किसी का इस पर ध्यान नहीं जाता ।
हालात बिगड़ते चले जाते हैं और जब महिला एक बार फिर हिम्मत बटोर कर मदद मांगती है तो ' हर मर्ज का इलाज एक गोली ' बता दी जाती है । दशकों से नींद की गोलियां , तनाव से दूर रखने वाली गोलियां , एंटी - डिप्रेसेंट्स ... महिलाओं को दी जा रही हैं - पुरुषों के मुकाबले तीन गुना ज्यादा । ये गोलियां लाखों महिलाओं को एक डरावनी यंत्रणा में कैद कर लेती हैं , जहां से निकल पाना बेहद मुश्किल होता है । दिक्कतों , को दूर करने के लिए ली गई गोलियां ही अब एक बड़ी समस्या बन जाती हैं । ये गोलियां महिलाओं को एक अच्छी मदद के तहत दी जाती हैं , उन्हें नॉर्मल होने में सहायताके लिए दी जाती हैं ... लेकिन यह ' नॉर्मल ' असल में है क्या ?
क्या हर बार हालात से उबर पाने मेंअसमर्थ होना नॉर्मल नहीं है ? पुरुषों की तरह ही महिलाओं का जिंदगी से हतोत्साहित होना क्या नॉर्मल नहीं है ? क्या गुस्सा होना और हालातों को बदलने की कोशिश करना नॉर्मल नहीं है ? जब तक महिलाओं की समस्याओं की असली वजहें अछूती और बेखबर बनी रहेंगी , अगली पीढ़ियों तक यही हाल बना रहेगा । हम समाज के तौर पर महिलाओं को जब तक सिर्फ अपने परिवार के बारे में सोचते रहने पर मजबूर करते रहेंगे तब तक वो इस प्रक्रिया में घायल होती रहेंगी । अगर उन्हें यह सोचना गलत महसूस होता रहेगा कि वो खुद के बारे में नहीं सोच सकती ,
प्यार में सबकुछ उन्हें ही कुर्बान करना तो उनकी दिमागी सेहत कभी ठीक नहीं रह सकती । जब तक महिलाओं को सभी की जरूरतों के भार तले रखा जाएगा , तब तक उसकी कीमत उन्हें सेहत और खुशियों से चुकाना होगी । महिलाओं को भी अपने मन की शांति पाने का पूरा अधिकार है । हर इंसान अलग खूबी और कूबत के साथ पैदा होता है । आज हमें बतौर समाज महिलाओं के लिए ऐसा मददगार माहौल तैयार करने की जरूरत है जहां वो भी उठकर आगे बढ़ सकें । '
( 1 जून 1993 को टर्निंग पॉइंट कॉन्फ्रेंस में प्रिंसेस ऑफ वेल्स डायना )
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