हमें परिश्रम करना चाहिये । परिश्रम करके अपना पेट भरने वाला ही सच्चा सुखी आदमी है ।
बहुत पहले किसी देश में हातिमताई नाम का एक राजा था । उसका राज्य बहुत खुशहाल था । वह हमेशा पूरे राज्य का भ्रमण करता था । प्रायः बह वेश बदलकर ही राज्य का भ्रमण करता था । इससे उसे जनता की तकलीफों से परिचय हो जाता था । गरीबों , असहायों और भिक्षुकों को बह रोज दान देता था । वह स्वयं अपने महल के सामने रोज भिखारियों तथा गरीबों को कपड़े बाँटता तथा खाने को रोटियाँ देता था । लोग उसके यहाँ से खाने को रोटियाँ और पहिनने के लिए कपड़े लेते और उसका गुणगान करते हुए वापिस जाते थे । इस तरह उसके राज्य में सभी सुखी थे ।
एक दिन वह एक जंगल से जा रहा था । उसने देखा कि एक बूढ़ा कमजोर व्यक्ति लकड़ी का गदठा सिर पर रखकर जा रहा है । उसके कपड़े फटे थे । वह बीमार और बहुत कमजोर दिखाई देता था । हातिमताई को उस ' बूढ़े पर बहुत दया आई । हातिमताई उसके पास गया और उससे बोला , " क्यों भाई , तुम इतने बूढ़े और कमजोर हो इतना बोझ क्यों उठाते हो ? " बूढ़ा बोला , " क्या करें । पेट तो भरना ही पड़ेगा । " हातिमताई ने कहा , " तुम हातिमताई के यहाँ क्यों नहीं जाते । वहाँ तुम्हें कपड़ा और रोटी मिलेगी । " बूढ़ा बोला , " हाँ , हातिमताई का नाम तो सुना है । वे बड़े दयालु राजा हैं । उनके यहाँ गरीबों को कपड़ा और रोटी बाँटी जाती है । " हातिमताई को वह बूढ़ा पहचान नहीं सका था । इसलिये दोनों की बातचीत होती रही ।
हातिमताई ने उस बूढ़े से कहा , " तुम भी वहाँ जाकर रोज कपड़े और रोटी क्यों नहीं ले लेते हो ? इतनी मेहनत क्यों करते हो ? " इस पर बूढ़े ने हँसकर कहा , " भाई , जो खुद कमाकर खा सकता है , उसे दूसरों की दया पर जीने का क्या हक है ? वैसे भी मांग कर खाना अच्छा नहीं होता है । "
हातिमताई उस बूढ़े की बात सुनकर बहुत खुश हुआ । उसे बड़ा गर्व था कि उसके राज्य में ऐसे परिश्रमी लोग रहते हैं । जिस देश के लोग अपने परिश्रम की कमाई खाते हों , वह देश कभी गरीब नहीं हो सकता ।
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