सार्थक कर्म करने से ही सफलता मिलती है । सोच - विचार कर किया गया पुरुषार्थ फलदायी होता है ।
हमारे देश के दक्षिण में विजयनगर नामक एक बड़ा राज्य था । राजा कृष्णदेव राय वहाँ शासन करते थे । एक बार विजयनगर में अकाल पड़ा । राजा ने मंत्रियों से सलाह ली कि क्या किया जाय । राज पुरोहित भी वहाँ थे । उन्होंने कहा , " महाराज ! मुझे कुछ रुपये दिये जायें । मैं पूजा पाठ करके इन्द्रदेव को प्रसन्न करूँगा और अकाल दूर करूंगा । "
दरबार में एक दरबारी तेनालीराम भी था । उसने कहा , “ महाराज , मुझे कुछ रुपये और सेना दीजिये । मैं अकाल से लडूंगा और उसे मार भगाऊँगा । " राजा ने मंत्रियों से सलाह ली । उसने दोनों को उनकी माँगी हुई चीजें दीं और उनसे कहा , " एक माह में अकाल दूर करके बताओ । "
तेनालीराम ने धन और सेना ली और वह खेतों में काम करने लगा । पानी के लिए उसने कुएँ खुदवाये , नहरें बनवाई । कुछ दिनों में खेत हरियाली से लहलहा उठे । राजपुरोहित ने हवन सामग्री ली और वह हवन , पूजा पाठ आदि कराता रहा ।
इसी प्रकार एक माह बीत गया । एक माह बाद राजा ने दोनों को बुलवाया । राजपुरोहित ने कहा , " महाराज ! अभी तो हमारा हवन - पूजन चल ही रहा है । इसमें कुछ समय और लगेगा । "
तेनालीराम से जब राजा ने पूछा कि तुमने क्या किया है ? तब तेनाली राम ने कहा , " राजन , आप सभी चलें और खेतों को देखें । " राजा सभी दरबारियों सहित खेतों को देखने गये । लहलहाती फसल देखकर वे बहुत प्रसन्न हुए । उन्होंने तेनालीराम को बहुत बड़ा ईनाम दिया ।
कहा है - हमें बुद्धि का उपयोग कर परिश्रम करना चाहिये ।
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