शिक्षा से मनुष्य की उन्नति होती है । शिक्षा ही व्यक्ति को परोपकारी और दयावान बनाती है । शिक्षा से व्यक्तित्व का विकास होता है ।
पुराने समय की बात है । उस समय बच्चों को गुरुकुल में पढ़ने जाना पड़ता था । एक बार एक गुरुकुल में दो बालक शिक्षा लेने गये । पढ़ाई पूरी होने पर उन्होंने गुरुजी से कहा , " अब हमारी पढ़ाई पूरी हो गई है । अब हमें आशीर्वाद दें । " गुरुजी ने कहा , " अभी कुछ दिन और रुको । अंतिम परीक्षा अभी बाकी है । "
कुछ दिन रुकने के बाद वे फिर गुरुजी के पास गये । गुरुजी ने उन्हें घर जाने की अनुमति दे दी । दोनों बालक बड़े प्रसन्न हुए और अपने - अपने घर जाने लगे । उन्होंने सोचा कि गुरुजी परीक्षा लेना भूल गये हैं ।
रास्ते में एक जंगल पड़ता था । वे दोनों बालक जा रहे थे । कुछ दूर चलने पर उन्होंने देखा कि रास्ते में बहुत से काँटे पड़े हैं । शाम हो रही थी । एक बालक तो काँटों से बचकर आगे चला गया ।
परन्तु दूसरा बालक रास्ते के काँटे बीनने लगा । उसने सोचा कि यदि काँटे पड़े रहेंगे , तो अंधेरे में किसी और के पैर में चुभ जायेंगे ।
उसने थोड़े ही काँटे बीने थे कि गुरुजी वहाँ से निकले । उन्होंने दोनों बालकों को अपने पास बुलाया । उन्होंने दोनों से कहा , " यह तुम लोगों की अंतिम परीक्षा थी । रास्ते में काँटे मैने ही डलवाये थे । जिस बालक ने काँटे बीने हैं , वही परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ है । दूसरे बालक को अभी और पढ़ना होगा । "
इस प्रकार गुरुजी ने अपनी शिक्षा के प्रभाव की जाँच की । काँटे बीनने वाले बालक का ध्यान दूसरों की सुविधा की ओर भी था । इसलिये उसकी शिक्षा पूर्ण मानी गई ।
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