स्वाभिमानी होने का अर्थ है , अपने स्वयं का अभिमाना हमें अपना सम्मान हमेशा बनाये रखना चाहिये ।
महाराणा प्रताण चित्तौड़ के राजा थे । अकबर ने उन्हें जीतने के लिए कई बार उनसे युद्ध किया । एक बार अकबर की जीत हुई । हल्दीघाटी के मैदान में महाराणा प्रताप युद्ध हार गये । हारने के बाद उन्होंने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की । उन्होंने प्रण किया कि जब तक वे चित्तोड़ फिर से वापिस जीत नहीं लेंगे , तब तक वे पलंग पर नहीं सोवेंगे और सोने - चांदी के बर्तनों में भोजन नहीं करेंगे ।
हारने के बाद महाराणा प्रताप वन में बच्चों सहित भटकने लगे । वन में उन्हें बहुत कष्ट था । उनके बच्चों को घास की रोटियाँ खानी पड़ती थीं ।
एक दिन यास की चार ही रोटियाँ बची थीं । चार लोग ही खाने वाले थे । बच्चे रोटी खाने वाले थे कि एक जन बिलाव आया और बच्ची से रोटी डीनकर ले भागा । बच्चे ने अपनी रोटी छोटी बहन को दे दी ।
इसी समय एक बूढा महाराणा के पास आया । वह कहने लगा , " मैं बहुत भूखा हूँ । कुछ खाने को दीजिये । " बच्ची वहीं खड़ी थी । वह जल्दी से बूढ़े के लिए पास की बची रोटियों ले आई । बूढ़े ने रोटियाँ खाई और पानी पिया ।
वह बूढ़ा महाराणा प्रताप से बोला , " आप क्यों मुसीबत उठा रहे हैं ? अकबर आपकी इज्जत करेंगे । उनसे मित्रता कर लो । "
तब महाराणा ने कहा , " सिर चाहे प्रेम से झुके या हार से । झुका हुआ सिर झुका हुआ ही होता है । ऊँचा सिर ऊंचा होता है । अकबर के दरबार में जाकर क्या मुझे दूसरे राजपूतों के समान सिर नहीं झुकाना होगा ? "
एक दिन उनकी बच्ची भी भूख से मर गई । फिर भी उन्होंने अपना स्वाभिमान नहीं त्यागा और उन्होंने अकबर की आधीनता मरते समय तक नहीं स्वीकारी । एक दिन उनका पुराना मंत्री भामाशाह देर सारा धन लेकर उनसे मिलने आया । उसने कहा , " महाराज , ये धन दौलत मेवाड़ की ही है । इसे स्वीकार कीजिये । इस धन से सेना का पुनः गठन कीजिये और मेवाड़ को । स्वतंत्र कराइये । " महाराणा यह सुनकर अधीर हो उठे । उन्होंने मेवाह को आजाद कराने के लिए पुन : सेना बनाई और जीवन पर्यंत मुगलों से लड़ते रहे । महाराणा प्रताप का नाम भारतीय इतिहास में सदा अमर रहेगा ।
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