दूसरों के कष्ट को देखकर मन दुखी हो जाता है और उसके कष्ट को दूर करने की मन में इच्छा उत्पन्न होती है । यही दया - भाव है । सारे विश्व में रेडक्रास संस्था दुखी और पीड़ित लोगों की सहायता करती है । हम भी अनाथालय या इसी प्रकार की संस्थाओं की मदद कर दुखी लोगों की सहायता कर सकते हैं ।
द्वारका एक नटखट बालक था , पर हमेशा हंसमुख और दूसरों की भलाई में लगा रहता था । एक बार किसी झूठे अपराध में उसे कैद की सजा हो गई । एक रात जेल से एक अन्य कैदी के साथ वह भाग निकला ।
रातों - रात चलते - चलते यह सबेरे एक छोटे से गाँव के किनारे पहुँचा । वह भूख के मारे व्याकुल था । थकावट इतनी थी कि एक डग भी चलना उसके लिए कठिन हो गया था । लाचार होकर उसने एक झोपड़ी में जाकर खाने को माँगा । झोपड़ी में एक अत्यंत गरीब किसान रहता था । किसान ने कहा , " भैया , मैं तुझे क्या खाने को दू ? मैं भी आज दो दिन से भूखा हूँ । घर में अनाज का एक दाना नहीं है । इस साल खेती का लगान भी नहीं दे सका । सुना है , दो चार दिन के भीतर यह थोड़ी सी जमीन और झोपड़ी भी नीलाम हो जायेगी । "
किसान की हालत सुनकर द्वारका को बड़ी दया आई । वह अपनी थकावट और भूख प्यास को भूल गया । उसने कहा , " किसान दादा , तुम्हें लगान में कितने रुपये देने हैं ? "
किसान ने कहा , " भैया मुझे सरकारी लगान के पाँच सौ रुपये देने हैं । "
द्वारका ने कहा , " मैं एक उपाय बताता हूँ । मैं अभी जेल से भागकर आ रहा हूँ । तुम मुझे पकड़कर पुलिस को सौंप दो , तो तुम्हें पांच सौ रुपये ईनाम में मिल जायेंगे ।"
किसान ने उसे पकड़वाने के लिए बहुत मना किया । परन्तु लड़के के हठ से किसान को उसकी बात माननी पड़ी । वह उसके हाथों में रस्सी बांधकर थाने ले गया ।
किसान को पांच सौ रुपये मिल गये । बालक पर जेल से भागने का मुकदमा चला । गवाह के रूप में किसान से पूछा गया कि तुमने इस कैदी को कैसे पकड़ा ? किसान ने सारी घटना सुना दी । घटना सुनकर सबको बड़ा आश्चर्य हुआ । न्यायाधीश को बालक की दयालुता पर बड़ी प्रसन्नता हुई ।
न्यायाधीश ने बालक के पहले अपराध का पता लगाया , तो मालूम हुआ कि झूठे अपराध पर उसे सजा हो गई थी । न्यायाधीश ने सरकार से उसे छोड़ने के लिए अनुरोध किया । सरकार ने बालक को कैद से छोड़ दिया । बालक की बड़ी ख्याति हुई और यश भी मिला ।
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