हमें निडर बनना चाहिये । निडरता से व्यक्ति को अपनी रक्षा करने के लिए शक्ति मिलती है । निडरता ही हमें ईश्वर पर पूरा भरोसा रखने वाला बनाती है ।
लोकमान्य तिलक हमारे देश के महान स्वतंत्रता सेनानी थे । वे महाराष्ट्र के रहने वाले थे । उनका पूरा नाम बाल गंगाधर तिलक था । जनता उन्हें लोकमान्य कहती थी । भारत में स्वतंत्रता की भावना जगाने में उनका महान् योगदान रहा । उनका नारा था- ' स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे ।
' उनके बचपन का एक किस्सा है । उन दिनों वे प्रायमरी शाला में पढ़ते थे । एक दिन कक्षा में एक शरारती लड़के ने मूंगफली खाकर छिलके कक्षा में बिखेर दिये । शिक्षक के आने पर उन्होंने देखा कि मूंगफली के छिलके तिलक के सामने अधिक पड़े हुए हैं । शिक्षक ने उन्हें डॉटा और दंड स्वरूप पूरी कक्षा के छिलके बाहर फेंकने के लिए कहा ।
तिलक ने शिक्षक से कहा , “ मैंने न तो मूंगफली खाई है और न मैं ये छिलके फेंकूँगा । मैं निर्दोष हूँ । " उन्होंने शिक्षक से मूंगफली के छिलके फेंकने वाले लड़के का पता लगाने के लिए प्रार्थना की । शिक्षक ने जब फिर से उनसे छिलके फेंकने लिए कहा , तब उन्होंने कहा , " शिष्य का धर्म गुरु की आज्ञा मानना है । मैं आपकी आज्ञा पालन के लिए ही ये छिलके फेंक दूंगा । परन्तु मैने यह कार्य नहीं किया है । मैं निर्दोष हूँ । "
तिलक की निर्भीक बातों से वह शिक्षक बहुत प्रसन्न हुए । उन्होंने तिलक की निर्भीकता की तारीफ की । उन्होंने कक्षा में शरारत करने वाले का पता लगाया । मूंगफली के छिलके फेंकने वाले से ही उन्होंने छिलके उठवाये और बाहर फिकवाये ।
बाद में यही निर्भीकता उन्होंने अपने अखबारों मराठा और केसरी में दिखाई , जिससे देश के नौजवानों में आजादी के लिए जोश भर गया था ।
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