ईमानदारी से कमाया हुआ धन पवित्र होता है । दान कम है या अधिक , यह महत्वपूर्ण नहीं है । महत्व की बात यह है कि किस भावना से दान दिया जाता है ।
एक बार ईसा मसीह एक नगर में उपदेश देकर चौराहे पर बैठ गये । वे शांत भाव से भगवान का ध्यान करते रहे । उनके अनेक शिष्य भी वहीं उनके साथ थे । अनेक लोग वहाँ से आ जा रहे थे । लोग उनके पास में रखे दान पात्र में कुछ दान देते और चले जाते थे ।
सारे दिन लोग वहाँ से आते जाते रहे । कुछ न कुछ दान सभी ने दिया । शाम के समय एक बुढ़िया आई । उसने बड़ी विनम्रता से अपनी पोटली में बँधा एक पैसा निकाला । वह पैसा दान पात्र में डालकर जाने लगी । इसी समय ईसा मसीह उठे और उन्होंने उसे बुढ़िया को आशीर्वाद दिया । ईसा मसीह ने अपने शिष्यों से कहा , “ इस बुढ़िया का दान आज का सबसे अच्छा दान रहा । इसे अवश्य स्वर्ग में स्थान मिलेगा । "
शिष्यों ने पूछा , “ प्रभु ऐसा क्यों ? अनेक लोगों ने तो बहुत अधिक दान दिया है । वे सभी स्वर्ग जाने के पात्र हैं । इस बुढ़िया ने तो केवल एक पैसा ही दान में दिया है ।"
ईसा मसीह ने समझाया , " दान में महत्व कम रकम या अधिक रकम का नहीं होता है । श्रद्धा और विनम्रता से दिया गया दान अधिक महत्वपूर्ण होता है । घमण्ड से दिया गया अधिक दान लोगों को स्वर्ग नहीं पहुँचाता है । इस बुढ़िया ने जो एक पैसा दान दिया है , वह उसकी नेक कमाई का दान है । अन्य लोगों ने बेईमानी से कमाया हुआ धन दान दिया है । इसलिये वे स्वर्ग के अधिकारी नहीं है । "
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